नमस्कार दोस्तों मैं सुरेन्द्र कुमार यादव स्वागत करता हो आपका आज के इस अपने पोस्ट पर जिसमें हमने आपको प्रवासीय पक्षियों के बारे में बताया है 




              





पक्षि विज्ञान से संबंधित जितनी विचित्र बातें हैं उनमें सबसे ज्यादा अजीब है पक्षियों का एक देश से उड़कर दूसरे देश को जाना और फिर लौटना अर्थात् कुछ समय के लिए उनका प्रवास। यह अजीब बात अब भी रहस्य बनी हुई है। वर्ष में दो बार, बसंत और पतझड़ में, लाखों चिड़ियाँ किसी सुनिश्चित स्थान पर पहुँचने के लिए लंबी यात्रा के लिए प्रस्थान करती हैं, कभी - कभी वे महाद्वीप और महासागर तक पार करते हैं। ऐसा क्या है जो उन्हें इस यात्रा के लिए मजबूर करता है? क्यों वे ऐसे खतरनाक विचारों के खतरे मोल लेना चाहते हैं और उन्हें कैसा लगता है कि किस रास्ते से जाना चाहिए? इन बुनियादी सवालों का अभी तक कोई जवाब उत्तर नहीं मिला है। हालाँकि सावधानी से किए गए कुछ प्रयोगों और प्रवासी चिड़ियों की घेराबंदी के परिणामस्वरूप अब हमको पहले की अपेक्षा काफी अधिक तथ्य ज्ञात हो चुके हैं।चिड़ियों के इस प्रवास की खास बात यह है कि इन दोनों स्थानों के बीच उनकी कहानी बिल्कुल नियमित होती है। उनकी खोज की भविष्यवाणी तक की जा सकती है जिसमें एक सप्ताह या उससे कम का ही आगा - पीछा हो सकता है। 









चिड़ियां लौटकर उन्हीं क्षेत्रों, संभावना: उसी बाग या खेत में आ जाती हैं। ये केवल उनकी गर्मी और जाड़े के निवास होते हैं और उनके बीच, हो सकता है, कई हजार मील तक का फासला हो सकता है। पहला सवाल जो दिमाग में आता है, वह यह है कि कुछ लोगों की ही चिडियाँ प्रवास के लिए क्यों जाती हैं, अन्य क्यों नहीं जाते हैं? जवाय हो सकता है कि उन लोगों के लिए उनका जीना इस प्रवास पर ही निर्भर करता है, अन्य किश्त के लिए नहीं। कुछ जीवों के लिए जीने की यह शर्त नितांत अनिवार्य न होकर सिर्फ धारणा होती है क्योंकि उनके कुछ सदस्य तो प्रवास पर जाते हैं और शेष वहीं बने रहते हैं।इनकी आबादी का एक भाग ही प्रतिवर्ष प्रवास पर जाता है और अन्य वहाँ बने रहते हैं। यह बात तो समझ में आती है कि कुछ चिड़ियाँ सख्त जाड़े से घबराकर विदेशी कमज़ोर स्थानों की ओर उड़ जाती हैं और जैसे ही गर्मी शुरू होने लगती है, लौटकर अपने देश आ जाते हैं। वे अपने देश जब आते हैं, उस समय वहाँ पेड़ों पर नई - नई कोपलें, कलियाँ और फूल निकले होते हैं और परिवार के पोषण के लिए तमाम तरह के कीड़े - मकोड़े उपलब्ध होते हैं गर्मी खत्म होते - होते बच्चे बड़े होकर आत्मनिर्भर हो जाते हैं। । और पतज़ड़ के बाद पहली सर्दी के पड़ने ही चिड़ियाँ प्रवास पर चल देने को तैयार हो जाते हैं। उदाहरणार्थ, रोजी पेस्टर, जो मध्य एशिया में अंडे देती हैं, भारत से मई में चले जाते हैं और अगस्त में फिर लौटकर जाते हैं।] कुछ चिड़ियाँ ज्यादा समय भी लेती हैं, वे मार्च में आ जाते हैं और सितंबर में लौटती हैं।यहाँ तक तो ऐसा लगता है कि इन कठिन प्रवासन का निश्चित महत्व है और शायद जो चिड़ियाँ प्रवास पर जाती हैं उनके लिए कुछ हद तक यह आवश्यक भी है लेकिन भ्रम में डालनेवाली बात यह है कि कुछ चिड़ियाँ प्रवास पर पूर्व से पश्चिम या पश्चिम से पूर्व लगभग लगभग समान अक्षांश पर, लगभग एक ही प्रकार के जलवायु प्रदेशों में अंडे देने के लिए जाते हैं।











इसके अलावा कुछ ऐसे भी चिड़ियाँ हैं जो प्रवास के नाम पर सिर्फ कुछ मील दूर ही जाते हैं और इसी स्थिति में यह समझ पाना मुश्किल हो जाता है कि इस प्रकार के स्थानीय प्रवास क्यों इतने आवश्यक होते हैं और उनके लिए किस प्रकार के लोग हो सकते हैं। हैं। उदाहरण है वे मार्च में आ जाते हैं और सितंबर में लौटती हैं।यहाँ तक तो ऐसा लगता है कि इन कठिन प्रवासन का निश्चित महत्व है और शायद जो चिड़ियाँ प्रवास पर जाती हैं उनके लिए कुछ हद तक यह आवश्यक भी है लेकिन भ्रम में डालनेवाली बात यह है कि कुछ चिड़ियाँ प्रवास पर पूर्व से पश्चिम या पश्चिम से पूर्व लगभग लगभग समान अक्षांश पर, लगभग एक ही प्रकार के जलवायु प्रदेशों में अंडे देने के लिए जाते हैं। इसके अलावा कुछ ऐसे भी चिड़ियाँ हैं जो प्रवास के नाम पर सिर्फ कुछ मील दूर ही जाते हैं और इसी स्थिति में यह समझ पाना मुश्किल हो जाता है कि इस प्रकार के स्थानीय प्रवास क्यों इतने आवश्यक होते हैं और उनके लिए किस प्रकार के लोग हो सकते हैं। हैं। उदाहरण है वे मार्च में आ जाते हैं और सितंबर में लौटती हैं।यहाँ तक तो ऐसा लगता है कि इन कठिन प्रवासन का निश्चित महत्व है और शायद जो चिड़ियाँ प्रवास पर जाती हैं उनके लिए कुछ हद तक यह आवश्यक भी है लेकिन भ्रम में डालनेवाली बात यह है कि कुछ चिड़ियाँ प्रवास पर पूर्व से पश्चिम या पश्चिम से पूर्व लगभग लगभग समान अक्षांश पर, लगभग एक ही प्रकार के जलवायु प्रदेशों में अंडे देने के लिए जाते हैं। इसके अलावा कुछ ऐसे भी चिड़ियाँ हैं जो प्रवास के नाम पर सिर्फ कुछ मील दूर ही जाते हैं और इसी स्थिति में यह समझ पाना मुश्किल हो जाता है कि इस प्रकार के स्थानीय प्रवास क्यों इतने आवश्यक होते हैं और उनके लिए किस प्रकार के लोग हो सकते हैं। हैं। उदाहरण है लगभग एक ही प्रकार के जलवायु प्रदेशों में अंडे देने के लिए जाते हैं।इसके अलावा कुछ ऐसे भी चिड़ियाँ हैं जो प्रवास के नाम पर सिर्फ कुछ मील दूर ही जाते हैं और इसी स्थिति में यह समझ पाना मुश्किल हो जाता है कि इस प्रकार के स्थानीय प्रवास क्यों इतने आवश्यक होते हैं और उनके लिए किस प्रकार के लोग हो सकते हैं। हैं। उदाहरण है लगभग एक ही प्रकार के जलवायु प्रदेशों में अंडे देने के लिए जाते हैं। इसके अलावा कुछ ऐसे भी चिड़ियाँ हैं जो प्रवास के नाम पर सिर्फ कुछ मील दूर ही जाते हैं और इसी स्थिति में यह समझ पाना मुश्किल हो जाता है कि इस प्रकार के स्थानीय प्रवास क्यों इतने आवश्यक होते हैं और उनके लिए किस प्रकार के लोग हो सकते हैं। हैं। उदाहरण के लिए मुंबई में पीकाल और पतरिंगे मानसून के दौरान शहरी इलाका छोड़कर थोड़ा दूर दक्षिण के पठार या मध्य भारत की ओर चले जाते हैं और सितंबर के शुरू में ज़रूर लौट आते हैं। इस संबंध में हम केवल इतना मानते हैं कि स्थानीय प्रवास के लिए, थोड़ी दूर के लिए, बड़ी संख्या में चिड़ियों का घेरा द्वारा उनकी कहानी के बारे में सही आँकड़े न इकट्ठा कर लें, कोई सही जानकारी नहीं भी हो सकती है। अपनी इस लंबी यात्रा पर प्रस्थान करने से पहले प्रवासी चिड़ियाँ इसके लिए बाकायदा की तैयारी करती हैं। वे खाना अधिक मात्रा में खाते हैं ताकि चर्बी की एक तह - सी बैठ जाए जो उनकी यात्रा में उनके शरीर को ताकत प्रदान कर सके। कुछ चिड़ियाँ अभ्यास करना और झुंड बनाकर उड़ना सीखना शुरू करती हैं। प्रयोगों से पता चलता है कि सूरज निकलने और डूबने से चिड़ियों को प्रस्थान के समय का संकेत मिलता है। लंबी यात्रा में सूरज ही उन्हें कुतुबनुमा का काम देता है। अब यह विश्वास किया जाने लगा है कि चिड़ियाँ सूर्य के कोण के अनुसार मार्ग निर्धारित करती हैं। धुंध और कोहरा पड़ने से जब सूरज छिप जाता है तो संभव है कि चिड़ियाँ थोड़ी देर के लिए अपने रास्ते में इधर - उधर हो जाएँ पर जैसे ही कोहरा छंटने के बाद दिखाई पड़ना शुरू होता है, वे फिर अपने रास्ते पर आ जाते हैं। 










रास्ता में कोई निशान अगर मिला तो उसका भी ध्यान जाता है, पर दिन में उनका पथप्रदर्शन मुख्य रूप से सूरज और रात में तारे ही करते हैं। चिड़ियाँ अक्सर छह सौ से एक हजार तीन सौ मीटर की ऊँचाई पर उड़ती हैं। ऐसे में छोटे मार्कर तो अक्सर दिखाई देते हैं ही नहीं। पर ये निशान कितने कम महत्त्व के होते हैं, इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि कई वस्तुओं में पक्षी का बच्चा जब पहल पहले पहल प्रवासयात्रा पर चलता है, प्राथमिकता- अपने माँ - बाप से बिल्कुल अलग और उन्हें पहले ही चल देता है। इसलिए हम यह मानने के लिए मजबूर हैं कि जिस बोध के द्वारा वे सूरज के अनुसार रास्ते खोजती हैं, उसका विश्लेषण तो संभव नहीं है, अतः इसे सहज ज्ञान ही मानना ​​चाहिए। कुछ प्रजातियाँ ऐसी होती हैं जिनकी चिड़ियाँ अकेले ही प्रवास यात्रा पर चलती हैं, हालाँकि अधिकांश चिड़ियाँ छोटे या बड़े दलों में चलती हैं। कई छोटी चिड़ियाँ वैसे तो सब काम दिन में करती हैं पर प्रवास में रात को ही उड़ना पसंद करती हैं, शायद इसलिए कि रात को आक्रामकों से कम खतरा रहता है। छोटी चिड़ियाँ लगभग तीस किलोमीटर प्रति घंटा के हिसाब से उड़ती हैं और प्रवासी चिड़ियाँ एक दिन में औसतन आठ घंटे उड़ती हैं, इसलिए प्रवास यात्रा का एक खंड दो सौ पचास किलोमीटर से कम होना चाहिए। बड़ी चिड़ियाँ प्राथमिकता: अस्सी किलोमीटर प्रति घंटे के हिसाब से उड़ सकती हैं और इसलिए वे एक दिन में काफी अधिक फासला तय कर सकते हैं। समुद्रों को पार करने में चिड़ियों को लगातार काफी समय तक उड़ना पड़ता है और ऐसे में बहुत से दल छत्तीस घंटे तक लगातार, बिना रुके उड़ते हैं। अक्सर समूह बुरे मौसम आँधी, अंधड आदि में फँस जाते हैं, विशेष रूप से, जब वे ज़मीन पर उड़ने वाले होते हैं। ऐसे में बहुत सी चिड़ियाँ मर जाती हैं। सारांश यह कि प्रवास यात्रा हमेशा कठिन और थकाक तो होती ही है, साथ ही खतरनाक भी होती है। अधिकांश प्रवासी चिड़ियाँ अपना जाड़ा काटने के लिए भारत आती हैं , पर यहाँ वे प्रजनन नहीं करतीं । बहुत सी चिड़ियाँ , जो पूर्वी यूरोप में या उत्तरी और मध्य एशिया या हिमालय की पर्वत श्रेणियों में रहती हैं , जाड़े के दिनों में भारत में आ जाती हैं । इस प्रकार , प्रवास पर जानेवाली चिड़ियों में प्रायः ये ही होती हैं जो समुद्री किनारों , नदियों और झीलों के इर्दगिर्द जुटनेवाली बत्तखें और जल में विहार करने वाली होती हैं । प्रवासी चिड़ियों के बारे में निश्चित जानकारी इकट्ठी करने के बारे में इस शताब्दी के प्रारंभ से ही संसार भर में जो तरीका अधिकाधिक प्रयोग होता आया है , वह है- उनकी टाँगों में एल्यूमिनियम के छल्ले पहना देना । चिड़ियों को पकड़कर , छल्ला पहनाया जाता है , रजिस्टर में लिखा जाता है और फिर छोड़ दिया जाता है । ये छल्ले उपयुक्त नापों के बने होते हैं । उन छल्लों पर क्रम संख्या और छल्ला पहनानेवाले का पता दिया रहता है , जिसका अर्थ होता है कि जिसको भी वह चिड़िया , किसी भी स्थिति में मिले , वह उसे इसकी सूचना दे दे । मुंबई की नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी इस संबंध में एक योजना चला रही है , जिसके अनुसार विभिन्न प्रवासी प्रजातियों की चिड़ियों के छल्ले पहनाने का काम भारत के विभिन्न भागों में बड़े पैमाने पर किया जा रहा है और पिछले पाँच वर्षों में उसको बहुत से ऐसे तथ्य और ऑकडे प्राप्त हुए हैं जो पहले बिल्कुल अज्ञात थे । कई जंगली बत्तखें चार हजार आठ सौ किलोमीटर दूर साइबेरिया में पाई गई है । विभिन्न प्रजातियों के दूर दूर पहुँचने और पाए जाने से संबंधित बहुत - सी उपयोगी जानकारी इकट्ठी होती जा रही है । छल्लों पर लिखा है , ' नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी , मुंबई को सूचना दें , और साथ ही क्रम संख्या भी दी जाती है । पाठकों से निवेदन है कि वे इस बात को अधिकसेअधिक लोगों को बताएँ जिससे उनको मालूम हो कि अगर किसी को कोई छल्लेवाली चिड़िया मरी मिले तो उन्हें क्या करना चाहिए ।










 इस प्रकार , जो भी सूचना एकत्र होती है , बहुमूल्य होती है और कभी भी व्यर्थ नहीं जाती । भारत में बहुत सी ऐसी चिड़ियाँ भी मिलती हैं जिनके पाँवों में विदेशों के छल्ले होते हैं । इस प्रकार प्राप्त सभी छल्ले , चाहे वे स्वदेशी हों या विदेशी , सोसायटी को भेज दिए जाने चाहिए और अगर किसी प्रकार से छल्ला भेजना संभव न हो तो छल्ले का सही नंबर , जिन परिस्थितियों में मिला . तारीख और पाने का स्थान लिखकर भेज दिया जाए । भारत में चिड़ियों के आवागमन के बारे में समुचित जानकारी इसी प्रकार के सामूहिक प्रयत्नों द्वारा इकट्ठी की जा सकती है ।