नमस्कार दोस्तों मैं सूरेन्द्र कुमार यादव knowledge book blogg का लेखक आपका अपने blogg knowledge book में बहोत बहोत स्वागत करता हूं दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम आपको एक ऐसे शख्स के जिवन के बारे में बताएंगे जिन्होंने अपनी बीवी की मौत का बदला लेने के लिए पहाड़ का सिना छल्ली कर दिया दोस्तों जिन्होंने सिर्फ छीनि हथोड़े से एक बड़े पहाड़ को चीर डाला जिसे लोग पागल भी कहते थे जो जाते जाते अपने प्रेम कि निशानी और लोगों के मन में अपने प्रेम की छाप छोड़ गऐ जिन्हें आज लोग माउंटेन मैन के नाम से भी जानते हैं और कुछ लोग तो उन्हें शहाजहा से भी बड़ा आशिक मानते हैं  दोस्तों उनका नाम था दशरथ मांझी जिनके बारे में हम आपको इस पोस्ट में बताएंगे















दशरथ मांझी का जीवन परिचय 




दशरथ मांझी का जन्म 14 जनवरी 1929 को बिहार के एक छोटे से गांव गहलौर में हूवा था वह एक गरीब परिवार से था इनका मुख्य व्यवसाय मजदूरी करना था जन्म के बाद दशरथ मांझी धिरे धिरे बड़े हूवे और वो दिन आया जो सभी के जीवन में एक बार जरूर आता है दशरथ मांझी  ने फाल्गुनी देवी से विवाह कर लिया और अपने खुशाहाल जीवन व्यतीत करने लगे  लेकिन मांझी के जीवन में दूख के दिन ने दशतक दे दिया  सन् 1959 में पहाड़ से पैर फिसलने की वजह से गिर पड़ी फाल्गूनी देवी को तूरंत इलाज कि आवश्यकता थी लेकिन हास्पिटल और फाल्गूनी देवी के बीच एक बड़ा पहाड़ खड़ा था जिसकी वजह से फाल्गुनी देवी को इलाज नहीं मिल पाया और वह मर गई यही से शुरू होती है दशरथ मांझी के पहाड़ का सिना चिरने कि कहानी














दशरथ मांझी के पहाड़ तोड़ने की कहानी                          


पत्नी की मृत्यु के बाद दशरथ मांझी बूरी तरह से टूट गया क्योंकि वह अपनी बीवी से बहोत प्यार करते थे और एक दिन उसके मन में विचार आया कि जिस पहाड़ के कारण मेरी पत्नी की मृत्यु हुई है जिस पहाड़ ने मेरी फाल्गुनी को मुझसे छीन है मैं उसे तोड़ डालूंगा इस तरह बदले की भावना में दशरथ मांझी छिनी और हथवड़े कि मदत से पहाड़ तोड़ने में लग गए शूरवात में लोग उसे पागल कहते थे लेकिन मांझी ने उसे अपना आत्मविश्वास बना लिया 1960 से 1982 तक लगातार दिन रात कि मेहनत से पहाड़ तोड़ने लगा एक दिन पहाड़ मांझी के  मेहनत से टूट गया  इसे तोड़ने में मांझी को 22 वर्ष का समय लगा जिससे 360 फूट लंबा 25 फुट गहरा  30 फूट चौड़ाई की सड़क का निर्माण हुआ दशरथ मांझी के गहलौर पहाड़ का सिना चिरने से गया से वाजिरंगज का फैसला 80 km से 13 km रह गया दशरथ मांझी के जीवन पर आधारित कई फिल्में भी बनीं है












दशरथ मांझी की मृत्यु  




अपने प्रेम को अमर बनने के बाद कैशर कि बिमरी हों जाने के कारण 17 अगस्त 2007 को दसरथ मांझी की मृत्यु हो गई लेकिन उसके प्रेम भुख प्यास त्याग कि चिन्ह आज भी गहलौर में विद्यमान है जहां लोग उसे देखने पहोचते रहते हैं  और दशरथ  मांझी और फाल्गुनी को याद करते हैं 










दोस्तों आशा करते हैं आपको हमारा यह पोस्ट आच्छा लगा होगा